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शे'र
इन्दर कलमा कल-कल करदा इ’श्क़ सिखाया कलमा हूचोदाँ तबक़े कलमे अंदर छड किताबाँ अलमाँ हू
सुल्तान बाहू
शे'र
आज तो 'क़ैसर'-ए-हज़ीं ज़ीस्त की राह मिल गईआ के ख़याल-ओ-ख़्वाब में शक्ल दिखा गया कोई
क़ैसर शाह वारसी
शे'र
कर दिया है बे-ख़ुदी ने आज इस क़ाबिल मुझेअपने पहलू में लिए लेती है ख़ुद मंज़िल मुझे
पंडित शाएक़ वारसी
शे'र
दिखाइए आज रू-ए-ज़ेबा उठाइए दरमियाँ से पर्दाकहाँ से अब इंतिज़ार-ए-फ़र्दा यही तो सुनते हैं उम्र-भर से